Monday, January 24, 2011

मेरे दिल की कविता

" एक दिन जब उनके करीब आ गया था
कलम रुक गयी थी और मै खोने लगा था 
चाँद से चहरे को देख कर मैंने हर पल काटे
सुनहरी आँखों को मैं अहसास  कर रहा था
गुलाब की पंखुड़ी जैसे होंठ उसके
महकता  आंचल उसका बस यही दिख रहा था
एक पल लगा की मंजिल मिल गयी मुझे
जब होस आया सब ख़तम हो चुका था
मैं वही   था वो दूर जा चुकी थी
या मैं कहु वो वही थी मैं दूर जा चुका था
उसकी मुस्कराहट  में फूल बरस  पड़ते थे
उसकी याद में तस्वीर बन पड़ती थी
मैं नहीं समझ पा रहा था  की मुझे क्या हो रहा है
मैं हूँ  भी  या खो रहा हूँ  "

बाक़ी जब मार्केट में बुक आयगी तब पढ़ लेना